keep moving...

Sunday, February 10, 2013

दुःख और द्वन्द

मैं तेरे दुःख में शामिल नहीं 
तेरे ख़ुशी मैं शरीक नहीं हो सकती 
मुझे बस हमदर्दी का रिश्ता निभाना है
वह भी, मुझे खुद खबर नहीं क्यूँ?
शायद, ज़माने के लिए,
शायद अपने अन्दर मौजूद इंसान के लिए 
संभवतः उस शिक्षा-दीक्षा के लिए,
जिससे हो कर आज  यह मुकाम है की मैं तुझे दया-भाव से देख सकूँ 

मैं तेरे दुःख का हिस्सा थी, 
तू मेरे दर्द का सबब था
तेरी जिद ने, छीना  घरवालों का अमन -चैन 
तेरी खुदगर्जी ने किया हमें बेघर- बेठौर 
चलो ,माफ़ किया एकबारगी ...
लेकिन उन अनगिनत एहसासों का क्या 
जिसे तेरी ईष्या ने किया कलुषित, तार-तार

शायद एक दिन, हम हमदर्दी के रिश्ते के अलावा 
अजनबियत के सम्बन्ध को निभा सकेंगे।
तब तक मुझे अपने अन्दर चल रहे द्वन्द के कारण नहीं चाहिए 
नहीं चहिये मुझे कोई ठौर, कोई आश्वासन ,
दिल के जटिलताओं का कोई आधार 
मैं अपने दुःख और द्वन्द के साथ जीना जानती हूँ 

(Sometimes, we wish to forgive people with all our heart... but somewhere, within the folds of memory lanes, where still something stirs as if it's still alive, in the past...watching us all over... that just for 'its' sake, to be fair and just, you find it difficult to forgive...)

Wednesday, January 18, 2012

यूँ मिलना...

इस दफा तुम हमसे यूँ मिलना
जैसे मिल रहे हो ज़माने बाद
कुछ दिल में मुहब्बत रखना
कुछ दिल में जगह ख़ाली रखना
कुछ जुबान पे मिश्री रखना
कुछ नज़रों में हौसला रखना।

बदलता है थोड़ा कुछ रोज़ ही
जब मौसम कुदरत का बदलता है
तुम एक आंख बदलाव पे रखना,
दूसरी से तुम मेरे अन्दर झांक कर देखना
जो मिल जाऊं मैं कहीं
मुझे ऐतहेराम से दफना देना

... मुर्दे यूँ शहर में घूमें
तो जिंदा लोगों को रश्क होता है
और जो चुप चाप मर जाये
तो लोग उन्हें ढूँढ़ते रहते हैं!

Dated: Dec 2012

Farewell

As I leave you
Amidst the excited faces
Engrossed into something common

As I cross by you
Smiling and nodding to a talking face

I feel you going away...
Bit by bit becoming distant
Staying beautiful forever
Frozen in time, in memory

I feel an urge to stop
To drink into this vision of You!
My steps deny pleasure what my eyes seek.

... Together, I experience a sense of LOSS
unspoken, undefined and bottomless

I wonder, Only sometimes

We met NOT on a crossroad,
Travelled NOT as co-passengers,
Shared an intimatcy NOT bestowed by fate,
Looked at a picture and did NOT think of the same thoughts,

Yes, we met and travelled and shared NOT by design but out of love.
Therefore how could it have a shape, foreseen?

I wonder, Only sometimes
But mostly I surrender!!

Wednesday, December 07, 2011

Introducing Anouti!


This is called 'Anouti' in colloquial terms. Its a home made remedy for cold and cough, handed over through my Nani to my Amma and now to us!

A delicious drink and is required to consume when its quite warm...

:) :)

Dhokla & Bread Roll Party

क्यों ऐसा होता है कि
अचानक एक मोड़ तक, साथ चल कर भी;
लग जाता एक अल्पविराम?
... जो लगा देता है एक स्थिर पूर्ण विराम
और उस विराम के साथ ही,
लग जाते अनगिनत अविराम प्रशनचिंह?

क्यों ऐसा होता कि उस घेरे से,
जिसमे विराम ही विराम होते हैं,
और प्रश्नचिन्हों का बाहुल्य,
... हम निकल नहीं पाते?
और नहीं पहुँच पाते उस चौक तक,
जिसके आगे भी एक मोड़ है, और उसके बाद निरंतर पड़ाव

क्यों ऐसा होता है कि अंतस से आती हर सही आवाज़ को
हम तराजू में रख कर तौलते हैं
संज्ञा से भूषित करते हैं, और यूँ ही बस यूँ ही,
विराम लगते चलते हैं?

क्यों कभी कोई कहानी पूरी नहीं होती?
क्यों कभी कोई रास्ता मोड़ के आगे नहीं बढ़ पता?
क्यों कभी सत्य को आमंडित नहीं छोड़ा जाता?

क्यों ऐसा नहीं होता कि कभी कोई लेखनी,
अपनी मर्ज़ी से चलती, बिन किसी कवी का बने हथियार?
शिखा, Bhopal (M.P) 2003

Tuesday, September 13, 2011

अपने दोस्तों के नाम

कुछ लोग..
सिर्फ अच्छे लोग होते हैं, उन्हें किसी भी परिभाषा से बौना नहीं बनाया जाता
जैसे तुम... तुम सब लोग
मेरे लिए बेइंतहा प्यार बरसाने के लिए शुक्रिया ना केवल बहुत छोटा बल्कि ना काफी है
इसलिए, सिर्फ इतना कि तुम आबाद रहो...
यह मेरी वसीयत रही और तुम सब मेरे प्यार के अकेले हक़दार
तुम्हारी-शिखा

Wednesday, January 26, 2011

Aah Jindagi

क्या होता होगा उन सपनो का
जो देखे जाते हैं लड़कपन मन के रंगीन चश्मों से
कुछ बड़ा कर दिखने कि चाहत या फिर
हर हाल मैं वादा निभाने का बालहठ

क्या होता होगा उनका जब व्यस्क होता मन ...
ढूँढता होगा अनगिनत कारण उनके नाकाबिल भविष्य पर...
जब हौसले होते हैं पस्त ... दाल- रोटी -नून के कालचक्र में
जब प्रेमी के प्रेम के परे भी बुनी जाती है एक दुनिया
... मकान , घर , बच्चो ...गृहस्थी और सुख कि सतरंगी पुडिया
जब सहसा ही बदल जाते हैं अर्थ उन सब के जो जिंदगी कि अहम् कड़ियाँ हुआ करती थी
जब रिश्ते खून के रंग देख कर नहीं बनते ... जब दोस्त से बढ़ कर कोई होता नहीं अपना सगा
जब घर मकान मैं बदलने लगते हैं ...और नए रिश्ते बनते हैं उस खोये हुए घर कि संजोयी यादों की नीव पर
और जब मकान घर नहीं बन पते...
जब अपनी ही आत्मा के सौदे हम कर रहे होते हैं multinational दफ्तरों के वातानुकूलित कमरों मैं
जब हमारा वजूद सिमट जाता है किसी और क द्वारा तय किये गए कायदों के तफसीलों में
जब हम रह जाते हैं...बस एक अधेड़ उम्र का पड़ाव... जिसके आगे एक सदी का सफ़र और
पीछे बहुत से नाकामयाब सपनो का काफिला होता होगा...
लड़कपन के रंगीन चश्मों का सतरंगा मंजर
सात जन्मों तक निभाने का जफा-इ-साथ...
और एक महासदी का बीता हुआ एक कालांश ...जैसे अभी अभी एक क्षण में सब कुछ बीत गया हो!!

Hum Rahe Na Hum...

तुम मिले... जीवन में नयी आशा का संचार हुआ
तुमसे मिली एक नयी ताज़ा सांस ...देदम होते फेफड़ों को
तुमसे सीखा बहुत कुछ... सीखी कुछ आदतें... कुछ अच्छी...कुछ बहुत अच्छी
तुमसे देखा कुछ नया... पुराने सी दुनिया का नया चेहरा... तुम्हारे चश्म से
और सीखा... बेंतान्हा मुहब्बत करना...

इतना कुछ सीखा... खुद को ढाला तुम्हारे रंगों में रंग लिया
किन्तु... अब भी मिल जाता है कभी कभी अपने पुराने वजूद का हिस्सा
मचलता हुआ बहार जब वह आ जाता है... क्रोध और विवशता के आलम में
और उतनी ही बार चुकानी पड़ती है मुझे कीमत... कभी अपने क्रोध कि,
... और कभी अपने अन्दर मौजूद उस पुराने पहचान की

सोचती हूँ... कि क्यों दो-दो रूप नहीं हो सकते मेरे इस पहचान में?
या फिर... इस सीखने -सीखाने के प्रक्रिया में क्या भूल रही हूँ में... ?
या फिर यह कि प्रेम कि अभिव्यक्ति समर्पण में है या फिर आत्मा-परिचय में?
यदि समर्पण ही उत्तर है तो...तुम्हारा प्रेम मुझे जीवन के संग्राम में अकेला क्यों छोड़ देता है,
यह कहता हुआ कि साहसी बनो, अपनी लड़ाई स्यवं लड़ो?
और यदि आत्मा-परिचय ही सही रास्ता है तो यह कौन तय करेगा कि मेरा परिचय संपूर्ण है या अधुरा?

अंतत, यह कौन तय करता है कि कहाँ मुझे शिखा रूप में रहना है
और कहाँ मुझे अभिसारिका रूप में?....या कि जीवन संगिनी के रूप में या फिर मित्रवत?

मुझे कब बोध होना चाहिए कि प्रेम कि सीमाएं किताबी मर्यादा है या फिर सामाजिक आँख का पानी?
कब मालूम पड़ना चाहिए कि तुमसे प्रेम का अर्थ एक कप cutting चाय साथ पीने का नाम है
... या फिर कामायनी पर विवेचना?
तुमसे प्रेम करने वक़्त इतना नहीं सोचा था... एक प्रवाह था जिसमें हम बहे चले जा रहे थे...
आज क्यों ढूंढ रहे हैं हम... वह छोटी सा मचान जिस पर बहते वक़्त शायद हम किसी और रूप में तब्दील हो गए...
नहीं मालूम...
आज भी जब तुम्हरे उस मासूम सी हसीं और निर्दोष सुन्दरता को देखती हूँ...
मुहब्बत करने लगती हूँ उस शख्स से जिसने मेरा हाथ थामा सदा के लिए...
पल पल मिटने वाली दुनिया में मुझे स्थिरता दे गया सदा के लिए
... उस एक पल के लिए... तुम्हे जीवन के कर एक पल में प्रेम किया है...तुम्हारे मोहन्मय संसार को जिया है!!