keep moving...

Wednesday, January 26, 2011

Aah Jindagi

क्या होता होगा उन सपनो का
जो देखे जाते हैं लड़कपन मन के रंगीन चश्मों से
कुछ बड़ा कर दिखने कि चाहत या फिर
हर हाल मैं वादा निभाने का बालहठ

क्या होता होगा उनका जब व्यस्क होता मन ...
ढूँढता होगा अनगिनत कारण उनके नाकाबिल भविष्य पर...
जब हौसले होते हैं पस्त ... दाल- रोटी -नून के कालचक्र में
जब प्रेमी के प्रेम के परे भी बुनी जाती है एक दुनिया
... मकान , घर , बच्चो ...गृहस्थी और सुख कि सतरंगी पुडिया
जब सहसा ही बदल जाते हैं अर्थ उन सब के जो जिंदगी कि अहम् कड़ियाँ हुआ करती थी
जब रिश्ते खून के रंग देख कर नहीं बनते ... जब दोस्त से बढ़ कर कोई होता नहीं अपना सगा
जब घर मकान मैं बदलने लगते हैं ...और नए रिश्ते बनते हैं उस खोये हुए घर कि संजोयी यादों की नीव पर
और जब मकान घर नहीं बन पते...
जब अपनी ही आत्मा के सौदे हम कर रहे होते हैं multinational दफ्तरों के वातानुकूलित कमरों मैं
जब हमारा वजूद सिमट जाता है किसी और क द्वारा तय किये गए कायदों के तफसीलों में
जब हम रह जाते हैं...बस एक अधेड़ उम्र का पड़ाव... जिसके आगे एक सदी का सफ़र और
पीछे बहुत से नाकामयाब सपनो का काफिला होता होगा...
लड़कपन के रंगीन चश्मों का सतरंगा मंजर
सात जन्मों तक निभाने का जफा-इ-साथ...
और एक महासदी का बीता हुआ एक कालांश ...जैसे अभी अभी एक क्षण में सब कुछ बीत गया हो!!

No comments: