keep moving...

Wednesday, December 07, 2011

क्यों ऐसा होता है कि
अचानक एक मोड़ तक, साथ चल कर भी;
लग जाता एक अल्पविराम?
... जो लगा देता है एक स्थिर पूर्ण विराम
और उस विराम के साथ ही,
लग जाते अनगिनत अविराम प्रशनचिंह?

क्यों ऐसा होता कि उस घेरे से,
जिसमे विराम ही विराम होते हैं,
और प्रश्नचिन्हों का बाहुल्य,
... हम निकल नहीं पाते?
और नहीं पहुँच पाते उस चौक तक,
जिसके आगे भी एक मोड़ है, और उसके बाद निरंतर पड़ाव

क्यों ऐसा होता है कि अंतस से आती हर सही आवाज़ को
हम तराजू में रख कर तौलते हैं
संज्ञा से भूषित करते हैं, और यूँ ही बस यूँ ही,
विराम लगते चलते हैं?

क्यों कभी कोई कहानी पूरी नहीं होती?
क्यों कभी कोई रास्ता मोड़ के आगे नहीं बढ़ पता?
क्यों कभी सत्य को आमंडित नहीं छोड़ा जाता?

क्यों ऐसा नहीं होता कि कभी कोई लेखनी,
अपनी मर्ज़ी से चलती, बिन किसी कवी का बने हथियार?
शिखा, Bhopal (M.P) 2003

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