इस दफा तुम हमसे यूँ मिलना
जैसे मिल रहे हो ज़माने बाद
कुछ दिल में मुहब्बत रखना
कुछ दिल में जगह ख़ाली रखना
कुछ जुबान पे मिश्री रखना
कुछ नज़रों में हौसला रखना।
बदलता है थोड़ा कुछ रोज़ ही
जब मौसम कुदरत का बदलता है
तुम एक आंख बदलाव पे रखना,
दूसरी से तुम मेरे अन्दर झांक कर देखना
जो मिल जाऊं मैं कहीं
मुझे ऐतहेराम से दफना देना
... मुर्दे यूँ शहर में घूमें
तो जिंदा लोगों को रश्क होता है
और जो चुप चाप मर जाये
तो लोग उन्हें ढूँढ़ते रहते हैं!
Dated: Dec 2012
1 comment:
last paragraph my fav :)
woke up today and thought of you, but looks like you have been busy.
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